Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(आमरणान्तिकः) मरणपर्यन्त (अन्योन्यस्य + अव्यभिचारः भवेते) पति-पत्नी में परस्पर किसी भी प्रकार के धर्म का उल्लंघन और विच्छेद न हो पाये (समासेन) संक्षेप मे (स्त्रीपुसयोः) स्त्री-पुरुष का (एषः परः धर्मः ज्ञेयः) यही साररूप मुख्य धर्म है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इन, गुणकर्मानुसार विवाहित पति-पत्नी, का पारस्परिक प्रेमयुक्त सम्बन्ध मरण पर्यन्त रहे, इस नियम को संक्षेप से स्त्री पुरुष का परम धर्म समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
स्त्री और पुरुष का धर्म वर्णन करने का सबसे संक्षिप्त रूप यह है कि मरण पर्यन्त वे दोनों कभी व्यभिचार न करें।