Manu Smriti
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अध्येष्यमाणं तु गुरुर्नित्यकालं अतन्द्रितः ।अधीष्व भो इति ब्रूयाद्विरामोऽस्त्विति चारमेत् ।2/73

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुरु आज्ञा दे तब शिष्य पढ़े और जब चुप रहने को कहे तब चुप रहे। तात्पर्य यह है कि गुरु-आज्ञा से पढ़े और चुप रहें अर्थात् गुरु की आज्ञा बिना कोई कार्य न करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. गुरूः नित्यकालमृ गुरू सदैव पढ़ाते समय अतन्द्रितः आलस्यरहित होकर अध्येष्यमाणं तु पढ़ने वाले शिष्य को ‘भो अधीष्वं’ इति ब्रू यात् ‘हे शिष्य पढ़ो’ इस प्रकार कहे च और ‘विरामः अस्तु’ इति आरमेत् ‘अब बस करो’ ऐसा कहकर पढ़ाना समाप्त करे ।
 
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