Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अदीयमाना) पिता आदि अभिभावक के द्वारा विवाह न करने पर (यदि स्वयं भतरिम् + अधिगच्छेत्) जो कन्या यदि स्वयं पति का वरण कर ले तो (किंचिते एनः न अवाप्तोति) वह कन्या किसी पाप की भागी नही होती (च) और (न सा यम् अधिगच्छति) न उसे कोई पाप होता है जिस पति को यह वरण करती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अदीयमाना यदि स्वयं भर्तारम् अधिगच्छेत्) यदि माँ बाप विवाह न करे और लड़की स्वयं विवाह कर लेवे तो (न किंचित् एनः अवाप्नोति) तो वह कोई पाप नहीं करता। (न च यम् सा अधिगच्छति) न वह कोई पाप करता है जिससे यह विवाह करती है।