Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
(1) व ध्या (बाँझ) स्त्री (2) मृतप्रजा (जिसकी सन्तान न जीती हो), कन्याजननी (पुत्री ही उत्पन्न करने वाली ऐसी स्त्री होने पर यथाक्रम आठवें, दशवें व (3) ग्यारहवें वर्ष दूसरा विवाह करना चाहिये और अप्रियवादिनी (कटुभाषिणी) स्त्री के ऊपर तो तुरन्त ही दूसरा विवाह करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(वन्ध्या + अष्टमे) वंध्या हो तो आठवें (विवाह से आठ वर्ष तक स्त्री का गर्भ न रहे) (मृतप्रजाः तु दशमे) सन्तान होकर मर जाये तो दशवे (स्त्रीजननी एकादशे अब्दे) जब-जब हो तब-तब कन्या ही होवें पुत्र न हो तो ग्यारहवें वर्ष तक (तु) और (अप्रियवादिनी) जो अप्रिय बोलने वाली हो तो (सद्यः) सद्यः उस स्त्री को छोड़कर (अधिवेद्या) दूसरी स्त्री से नियोग करके सन्तानोत्पत्ति कर लेवे । (स. प्र. चतुर्थ समु.)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसी प्रकार, पुरुष के लिये भी नियम है कि यदि स्त्री बन्ध्या हो और विवाह से आठ वर्ष तक उसके कोई गर्भ न रहे तो आठवें वर्ष, सन्तान होकर मर जाती हो तो १०वें वर्ष, जब-जब हो तब-तब कन्या ही होवें पुत्र न हो तो ग्यारहवें वर्ष, और यदि अप्रियवादिनी हो तो सद्यः उसे छोड़कर किसी दूसरी स्त्री से नियोग करके सन्तानोत्पत्ति कर लेवे।