Manu Smriti
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प्रोषितो धर्मकार्यार्थं प्रतीक्ष्योऽष्टौ नरः समाः ।विद्यार्थं षड्यशोऽर्थं वा कामार्थं त्रींस्तु वत्सरान् ।।9/76

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
टिप्पणी :
तदनन्तर क्या करना चाहिये इसका उल्लेख नारदस्मृति में मनुजी के मतानुसार आया है और इस स्थान पर भी 74वें श्लोक से संयुक्त कर पढ़ना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विवाहित स्त्री (नरः धर्मकार्यार्थ प्रोषितः) जो विवाहित पति धर्म के लिए परदेश गया हो तो (अष्टौ समाः) आठ वर्ष (विद्यार्थ वा यशः + अर्थ षट्) विद्या और कीर्त्ति के लिए गया हो तो छः (कामार्थ त्रीन् तु वत्सरान्) धनादि कामना के लिए गयो हो तो तीन वर्ष तक (प्रतीक्ष्यः) वाट देखके पश्चात् नियोग करके सन्तानोत्पत्ति करले । जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त पति छूट जावे । (स. प्र. चतुर्थ समु.)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पत्नी को चाहिए कि यदि उसका पति धर्मप्रचर के लिए परदेश में गया हो तो आठ वर्ष, विद्या व कीर्ति के लिए परदेश में गया हो तो छः वर्ष, और धनकामना के लिए परदेश में गया हो तो तीन वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा करे। यदि तब तक वह परदेश से लौटकर न आवे, तो वह नियोग करके संतानोत्पत्ति कर लेवे, और जब विवाहित पति आजावे तो नियुक्त पति छूट जावे।१
टिप्पणी :
१. यह काल क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के लिए विहित प्रतीत होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि पति धर्म-कार्य के लिये परदेश गया हो तो पत्नी आठ वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा करे। यदि विद्या पढ़ने गया हो तो छः वर्ष तक। यदि काम के वश गया हो तो तीन वर्ष तक।
 
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