Manu Smriti
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विधाय प्रोषिते वृत्तिं जीवेन्नियमं आस्थिता ।प्रोषिते त्वविधायैव जीवेच्छिल्पैरगर्हितैः ।।9/75

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(वृत्ति विधाय प्रोषिते) जीविका का प्रबन्ध करके पति के परदेश जाने पर (नियमम् + पास्थिता जावेत्) स्त्री अपने नियमों का पालन करती हुई जीवनयात्रा चलायें (पविधाय + एव तु प्रोषिते) यदि पति बिना जीविका का प्रबन्ध किये परदेश चला जाये तो (अगर्हितेः शिल्पैः जोवेत्) अनिन्दित शिल्पकार्यो (सिलाई करना, बुनना, कातना आदि) को करके अपनी जीवनयात्रा चलाये ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वृत्तिं विधाय प्रोषिते) जीविका का प्रबन्ध करने के पश्चात् यदि पति परदेश जावे तो (नियमम् आस्थिता जीवेत्) स्त्री को चाहिये कि पतिव्रत धर्म को पालन करती हुई रहे। (अविधाय एव प्रोषिते) यदि पति बिना प्रबन्ध किये जावे तो (अगर्हितैः शिल्पैः जीवेत्) तो अनिन्दनीय काम करके निर्वाह करे (जैसे सीना, काढ़ना, अध्यापन आदि आदि)।
 
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