Manu Smriti
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विधाय वृत्तिं भार्यायाः प्रवसेत्कार्यवान्नरः ।अवृत्तिकर्शिता हि स्त्री प्रदुष्येत्स्थितिमत्यपि ।।9/74

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(कार्यवान् नरः) किसी आवश्यक कार्य के लिए परदेश में जाने वाला मनुष्य (भार्यायाः वृत्ति विधाय प्रवसेत्) अपनी पत्नी की भरण-पोषण की जीविका देकर परदेश में जाये (हि) क्योंकि (अवृत्तिकर्षिता स्थितिमती + अपि स्त्री) जीविका के अभाव से पीड़ित होकर शुद्ध आचरण वाली स्त्री भी (प्रदुष्येत्) दूषित हो सकती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि किसी विशेष अवस्था में कार्यवश मनुष्य को एकाकी प्रवास करना ही पड़े, तो उसे चाहिए कि वह पत्नी के लिए भोजनाच्छादान का समुचित प्रबन्ध करके जावे। क्योंकि पतिव्रतधर्म में द्ढ़ता वाली भी स्त्री, यदि निर्वाह करने में तंग हो तो वह दूषित हो सकती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कार्यवान् नरः) कुछ काम पड़ने पर जो कोई (प्रवसेत्) परदेश जावें वह (भार्यायाः वृत्ति विधाय) स्त्री की जीविका का प्रबन्ध करके जाय। (स्थिति मति अपि अवृत्तिकपिता स्त्री) शीलवती स्त्री भी जीविका शून्य होने पर (हि प्रदुष्येत्) बदचलन हो सकती है।
 
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