Manu Smriti
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ब्रह्मारम्भेऽवसाने च पादौ ग्राह्यौ गुरोः सदा ।संहत्य हस्तावध्येयं स हि ब्रह्माञ्जलिः स्मृतः ।2/71

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नित्य पाठारम्भ और पाठान्त पर दोनों हाथों से गुरु के चरण छुए और गुरु की आज्ञा का पालन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्रह्मारम्भे च अवसाने वेद पढ़ने के आरम्भ और समाप्ति पर सदा गुरोः पादौ ग्राह्यौ सदैव गुरू के दोनों चरणों को छूकर नमस्कार करे (२।४७) हस्तौ संहत्य अध्येयम् दोनों हाथ जोड़कर गुरू में पढ़ना चाहिये; सः हि ब्रह्मांज्जलिः स्मृतः इसी हाथ जोड़ने को ‘ब्रह्माज्ंजलि’ कहा जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(२) ब्रह्मचारी अध्ययन से पहले और पीछे सदा गुरु के चरण हुआ करे और गुरु को हाथ जोड़ के पढ़ा करे, क्योंकि यह अञ्जलि गुरु (ब्रह्मन्) के लिए होने के कारण ब्रह्माञ्जलि कहलाती है।
 
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