Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इसके पश्चात् अविनाशी ब्रह्म ने उन सात बड़े पराक्रम रखने वाले महत्तत्त्व अहंकार और पांच तन्मात्राओं के सूक्ष्म भाग से इस नाश होने वाले जगत् को बनाया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (इस प्रकार) (अव्ययात्) विनाशरहित परमात्मा से (तेषां तु) उन्हीं (१४,१५ में वर्णित) (महौजसाम्) महाशक्तिशाली (सप्तानां पुरूषाणाम्) सात तत्त्वों - महत् , अहंकार तथा पाँच तन्मात्राओं के (सूक्ष्माभ्यः मूर्तिमात्राभ्यः) जगत् के पदार्थों का निर्माण करने वाले सूक्ष्म विकारी अंशों से (इदम् व्ययम्) यह दृश्यमान विनाशशील समस्त जगत् (सम्भवति) उत्पन्न होता है ।