Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कुल के वृद्धों की आज्ञा से नियोग करने पर यदि कामाशक्ति से नियोग करे तो वह व्यभिचार में परिगणित है क्योंकि नियोग केवल सन्तानोत्पत्ति के अर्थ है, विषय-भोग के हेतु नहीं, ऐसा मनुष्य गुरुपत्नी से व्यभिचार करने वाला कहाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(नियुक्तौ) नियोग के लिए नियुक्त बड़ा या छोटा यदि (विधि- हित्वा) नियोग की विधि = व्यवस्था (समाज या परिवार में किये गये पूर्व निश्चयो) को छोड़कर (कामतः वर्तेयाताम्) काम के वशीभूत संभोगादि करे (तु) तो (तौ + उभौ) वे दोनों (स्नुषाग-गुरुतल्पगौ पतित स्याताम्) पुत्रवधूगमन औरर गुरुपत्नीगमन के अपराधी माने जायेंगे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु, जो नियुक्त स्त्री-पुरुष उपर्युक्त शास्त्रविधान को त्याग कर कामवश परस्पर में समागम का वर्ताव करते हैं, वे दोनों, पुत्रवधू और गुरु से व्यभिचार करने वाले, पतित होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यौ नियुक्तौ) जिन स्त्री-पुरुष ने नियोग किया है वे दोनों (विधिम् हित्वा) शास्त्र के नियम का उल्लंघन करके (कामतः वत्र्तेयाताम्) यदि काम इच्छा पूरी करें (तु) तो (तौ उभौ) वे दोनों (पतितौ स्याताम्) पतित हो जावें (स्नुषाग, गुरुतल्पगौ) जैसे पुत्री के साथ गमन करने वाला या गुरुपत्नी के साथ गमन करने वाला पतित हो जाता है।