Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पिता की आज्ञा पाकर शरीर पर घी लगाकर मूक होकर विधवा स्त्री में पुत्र उत्पन्न करें और एक पुत्र के अतिरिक्त दूसरा कभी उत्पन्न न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दोनों (9/60-61) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है—
1. अन्तर्विरोध- (क) इन श्लोकों में नियोग द्वारा एक अथवा दो पुत्रों की प्राप्ति का विधान किया है । यह विधान 9/59 श्लोक से विरुद्ध होने से मान्य नही हो सकता । क्योंकि उस श्लोक में ईप्सिता प्रजा= इच्छा के अनुसार सन्तान प्राप्त करे, यह लिखा है । संख्या का कोई निर्देश नही किया है ।
2. अवान्तरविरोध- 9/60 में एक पुत्र की नियोग से व्यवस्था लिखी है । और दूसरी सन्तान का बिल्कुल निषेध किया है । किन्तु 61वें श्लोक में उद्देश्य पूरा न होने पर दूसरी सन्तान को भी न्याययुक्त माना है । इन दोनों कथनों में परस्पर स्पष्ट विरोध है । इसलिये 9/59 की व्यवस्था ही ठीक है । और 9/62 में भी कोई संख्या नही लिखी है । केवल नियोग का उद्देश्य पूरा होने पर सन्तानोत्पत्ति का निषेध किया है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार विधवा में नियुक्त पुरुष गर्भाधान-संस्कार पूर्वक सर्वौषध-घृत के खाने व शरीर पर मलने से कान्तियुक्त होकर, वाणी को संयम में रखकर, अर्थात् रहस्य में मन को पतित करने वाले अश्लील भाषण को त्यागकर, रात्रि के समय उस से एक पुत्र को उत्पन्न करे, दूसरे पुत्र को कदापि उत्पन्न न करे।१
टिप्पणी :
१. सर्वौषध घृत के सेवन की व्यवस्था सं० वि० गर्भाधानसंस्कार में देखें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(विधवायां नियुक्ताः तु) जो विधवा के साथ नियोग करे, वह (निशि) रात में (घृताक्तः) शरीर में घी लगाकर (वाग्यतः) मौन होकर (एकम् पुत्रम् उत्पादयेत्) एक पुत्र उत्पन्न करें। (न द्वितीयं कथंचन) कभी दूसरा नहीं।