Manu Smriti
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एष धर्मो गवाश्वस्य दास्युष्ट्राजाविकस्य च ।विहंगमहिषीणां च विज्ञेयः प्रसवं प्रति ।।9/55
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गऊ, घोड़ा, ऊँट, बकरी, भेड़, पक्षी, भैंस तथा दासी इनकी उत्पत्ति में इसी धर्म को जानना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दोनों (9/54, 55) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है— 1. विषयविरोध- 9/25, 31 श्लोकों के अनुसार प्रस्तुत विषय है— सन्तानोत्पत्ति-धर्म का । जिसे मनु ने क्षेत्र बीज के उदाहरण (9/33) के द्वारा स्पष्ट किया है । इन श्लोकों में जल-वायु का उदाहरण (54) और पशु-प्रसव का उदाहरण (55) उक्त विषय से बाह्य होने से विषयविरुद्ध है । क्यों कि राजा की न्यायसभा में विवाद उत्पन्न होने पर निर्णय किया जाता है । किन्तु जिस बीज को हवा उड़ाकर स्थानान्तर में ले जाती है अथवा जल बहाकर दूसरे क्षेत्र में ले जाता है, उसके विषय में विवाद न होने से उदाहरण देना असंगत है ।
 
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