Manu Smriti
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फलं त्वनभिसंधाय क्षेत्रिणां बीजिनां तथा ।प्रत्यक्षं क्षेत्रिणां अर्थो बीजाद्योनिर्गलीयसी ।।9/52

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस स्त्री में जो उत्पन्न हो वह हमारा और तुम्हारा दोनों का हो, ऐसे विचार को हृदय में न रखकर जो उत्पन्न किया पुत्र क्षेत्र वाली का होता है, बीज से क्षेत्र श्रेष्ठ है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(क्षेत्रिणां तथा बोजिनाम्) खेतवालों और बीजवालों में (फलं तु अनभिसंघाय) फल के लेने के विषय में बिना निश्चय हुए कि इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला अन्न, सन्तान आदि फल किसका होगा बीज-वपन करने पर (प्रत्यक्ष क्षेत्रेणाम + अर्थः) वह स्पष्टरूप से क्षेत्रस्वामी का फल या उपलब्धि होती है, क्योंकि (बीजात् योनिः गरीयसी) ऐसी स्थिति में बीज से योनि बलवती होती है ।
 
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