Manu Smriti
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यदन्यगोषु वृषभो वत्सानां जनयेच्छतम् ।गोमिनां एव ते वत्सा मोघं स्कन्दितं आर्षभम् ।।9/50
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूसरे की गऊ में अन्य का बैल, बछड़ा उत्पन्न करे तो गऊ का स्वामी उस बछड़े को पाता है और बैल का वीर्य निष्फल जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दोनों (9/50-51) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है— 1. प्रसंग-विरोध- यहाँ पूर्वापर श्लोकों का प्रसंग परस्पर सम्बद्ध है । 49वे श्लोक में परस्त्री में बीज-वपन का कारण दिखाया है और उसका विकल्प 52 वें श्लोक में दिखाया है । इस प्रकार दोनों श्लोकों में परस्पर संगति है । किन्तु इनके मध्य में इन दोनों श्लोकों ने उस क्रम को भंग कर दिया है । 2. विषयविरोध- 9/25 श्लोक के अनुसार प्रस्तुत श्लोकों का प्रसंग प्रजाधर्म है । जिसे क्षेत्र और बीज के उदाहरण (9/33) द्वारा स्पष्ट किया गया है । इस विषय में पशुओं की प्रथा का उदाहरण विषयबाह्य है । 3. अन्तर्विरोध- 9/50 में जो बात कही है अर्थात् वृषभ के बीज बोनें पर भी सन्तान गाय वालों की ही होती है, बीज वाली की नही । यह मान्यता 52-53 श्लोकों से विरुद्ध होने से मान्य नहीं हो सकती । और 51 वां श्लोक भी 50 वें से सम्बद्ध होने से प्रक्षिप्त है । 4. पुनरुक्तिदोष- 51 वें श्लोक मे 49 वें श्लोक की पुनरुक्तिमात्र है, अतः प्रक्षिप्त है । मनु इस प्रकार की परस्पर विरुद्ध, असंगत और पुनरुक्त बातों को कहीं नही कहते । अतः ये श्लोक प्रक्षिप्त है ।
 
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