Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो दूसरे के खेत में बीज बोते हैं वह उसके फल के स्वामी नहीं हो सकते वैसे ही परस्त्री में सन्तान उत्पन्न करने वाला सन्तान का स्वामी नहीं होता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्योंकि (ये + अक्षेत्रिणः बीजवन्तः) जो क्षेत्ररहित है और बीज वाले हैं (परक्षेत्रेप्रवापिणः) तथा दूसरे के क्षेत्र में उस बीज को बोते है (ते वै) निश्चय से (क्वचित्) कहीं भी (जातस्य सस्यस्य फलं न लभन्ते) उत्पन्न हुये अन्न के फल को नहीं प्राप्त करते ।