Manu Smriti
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अन्यदुप्तं जातं अन्यदित्येतन्नोपपद्यते ।उप्यते यद्धि यद्बीजं तत्तदेव प्ररोहति ।।9/40
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
एक वस्तु को बोया और दूसरी वस्तु उत्पन्न हुई ऐसा नहीं होता, वरन् जो बोते हैं वही उपजता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये छः (9/35-40) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं— 1. प्रसंग-विरोध- यहां पूर्वापर श्लोकों का (34 का 41वें से) प्रसंग परस्पर संबद्ध है । क्योंकि दोनों श्लोकों मे मानव-बीजवपन का प्रसंग है । प्रत्येक पुरुष को परस्त्री के साथ व्यभिचार से सदा बचना चाहिये । परन्तु इन श्लोकों में इस प्रसंग के विरुद्ध भूमि में किसानों के द्वारा बीज-वपन का वर्णन करना अप्रासंगिक है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो-जो बीज बोया जाता है वही उगता है। बोया कुछ और तथा उगा कुछ और, ऐसा कभी नहीं होता। यह बीज की प्रधानता बताई गई। इसका प्रयोजन आगे के श्लोक में है:-
 
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