Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जैसे साठी, धान, मूँग, तिल, माप (उड़द), जौं, गेहूँ, ईख, लहसुन आदि बीज बोने के उपरान्त विभिन्न रूप में उपजते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये छः (9/35-40) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं—
1. प्रसंग-विरोध- यहां पूर्वापर श्लोकों का (34 का 41वें से) प्रसंग परस्पर संबद्ध है । क्योंकि दोनों श्लोकों मे मानव-बीजवपन का प्रसंग है । प्रत्येक पुरुष को परस्त्री के साथ व्यभिचार से सदा बचना चाहिये । परन्तु इन श्लोकों में इस प्रसंग के विरुद्ध भूमि में किसानों के द्वारा बीज-वपन का वर्णन करना अप्रासंगिक है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सांठी, धान, मूँग, तिल, उर्द, जौ, लहसुन, गन्ना यह सब अपने बीज के अनुकूल ही उगते हैं।