Manu Smriti
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यादृशं तूप्यते बीजं क्षेत्रे कालोपपादिते ।तादृग्रोहति तत्तस्मिन्बीजं स्वैर्व्यञ्जितं गुणैः ।।9/36
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बीज रोपने के समय जैसा बीज खेत में रोपा (बोया) जाता है। वैसा ही अपने गुणों सहित उत्पन्न होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये छः (9/35-40) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं— 1. प्रसंग-विरोध- यहां पूर्वापर श्लोकों का (34 का 41वें से) प्रसंग परस्पर संबद्ध है । क्योंकि दोनों श्लोकों मे मानव-बीजवपन का प्रसंग है । प्रत्येक पुरुष को परस्त्री के साथ व्यभिचार से सदा बचना चाहिये । परन्तु इन श्लोकों में इस प्रसंग के विरुद्ध भूमि में किसानों के द्वारा बीज-वपन का वर्णन करना अप्रासंगिक है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यादृशम् बीजम् कालोपपादिते क्षेत्रे उप्यते) जैसा बीज उचित समय पर खेत में बोया जाता है (तत् बीजम्) वह बीज (तादृक् एव) वैसा ही (स्वैः गुणैः व्यज्जितम्) अपने गुणों से युक्त होकर (तस्मिन् रोहति) उस खेत में उगता है।
 
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