Manu Smriti
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बीजस्य चैव योन्याश्च बीजं उत्कृष्टं उच्यते ।सर्वभूतप्रसूतिर्हि बीजलक्षणलक्षिता ।।9/35
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बीज और क्षेत्र (लक्ष्मी) दोनों में से बीज उत्कृष्ट है। सब जीवों की उत्पत्ति वीर्य के लक्षण से जानी जाती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये छः (9/35-40) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं— 1. प्रसंग-विरोध- यहां पूर्वापर श्लोकों का (34 का 41वें से) प्रसंग परस्पर संबद्ध है । क्योंकि दोनों श्लोकों मे मानव-बीजवपन का प्रसंग है । प्रत्येक पुरुष को परस्त्री के साथ व्यभिचार से सदा बचना चाहिये । परन्तु इन श्लोकों में इस प्रसंग के विरुद्ध भूमि में किसानों के द्वारा बीज-वपन का वर्णन करना अप्रासंगिक है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बीज और योनि में बीज को प्रधान बताया है। सब सन्तान के वही लक्षण होते हैं जो बीज के।
 
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