Manu Smriti
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विशिष्टं कुत्र चिद्बीजं स्त्रीयोनिस्त्वेव कुत्र चित् ।उभयं तु समं यत्र सा प्रसूतिः प्रशस्यते ।।9/34
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कहीं वीर्य विशिष्ट (उत्तम) हैं कहीं क्षेत्र (लक्ष्मी) विशिष्ट है जहाँ दोनों की समानता है वह सन्तान अति उत्तम है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(प्राणियों की उत्पत्ति में) कहीं बीज की प्रधानता होती है कहीं स्त्रीयोनि की प्रधानता होती है किन्तु जहां दोनों की प्रधानता होती है वह सन्तान प्रशंसनीय होती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
कहीं अकेले वीर्य का उत्तमता और कहीं अकेले रज की उत्तमता से प्रशस्त संतान नहीं होती। परन्तु जहां ये दोनों समानभाव से उत्तम होते हैं, वह सन्तान प्रशस्त होती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
कहीं बीज की विशेषता है, कहीं भूमि की। वही सन्तान अच्छी होती है, जहाँ बीज और क्षेत्र दोनों उत्तम हों।
 
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