Manu Smriti
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पुत्रं प्रत्युदितं सद्भिः पूर्वजैश्च महर्षिभिः ।विश्वजन्यं इमं पुण्यं उपन्यासं निबोधत ।।9/31

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
साधु (उत्तम) पूर्वज महर्षियों ने पुत्र के विषय में संसार के भले के हेतु जिस शुद्ध (पवित्र) धर्म को कहा है उसको कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
श्रेष्ठ व्यक्तियों तथा प्राचीन महर्षियों ने पुत्र के विषय में जो सर्वजनहितकारी और पुण्यदायक विचार कहा है इस शिक्षाप्रद विचार को सुनो—
 
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