Manu Smriti
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अपत्यं धर्मकार्याणि शुश्रूषा रतिरुत्तमा ।दाराधीनस्तथा स्वर्गः पितॄणां आत्मनश्च ह ।।9/28

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सन्तानोत्पत्ति, धर्मकार्य, उत्तम सेवा तथा अपना व अपने वृद्धों का स्वर्ग यह सब स्त्रियों के आधीन है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सन्तानोत्पत्ति धर्म-कार्य उत्तम सेवा और रति तथा अपना और पितरों का जितना सुख है वह सब स्त्री ही के आधीन होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सन्तानोत्पादक व पालन, धर्मकार्य, सेवा, उत्तम प्रीति अर्थात् चित्त का सदा प्रफुल्लित रहना, तथा पितरों का और अपना सब सुख स्त्री के आधीन होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सन्तानोत्पत्ति, धर्मकार्य, शुश्रूषा, आनन्द देने वाली रति (भोग), माता-पिता का तथा अपना सुख यह सब स्त्री के ही आधीन हैं।
 
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