Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पुत्र व पुत्री की उत्पत्ति, तत्पश्चात् उनका लालन पालन तथा प्राचीन लौकिक (सांसारिक) नियम इन सबों का प्रत्यक्ष प्रमाण स्त्रियाँ ही हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
हे पुरुषो ! अपत्यों की उत्पत्ति उत्पन्न का पालन करने आदि लोकव्यवहार को नित्यप्रति जो कि गृहाश्रम का कार्य होता है उसका निबन्ध करने वाली प्रत्यक्ष स्त्री है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सन्तान का उत्पन्न करना, उत्पन्न का भलीप्रकार पालन करना, तथा पंचमहायज्ञादि समस्त दैनिक गृहस्थाश्रम-व्यवहार का प्रत्यक्ष आधार स्त्री ही है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
संतान का उत्पन्न करना, उत्पन्न हुई संतान का पालन और प्रतिदिन की लोकयात्रा का प्रत्यक्ष साधन स्त्री ही है। अर्थात् बिना स्त्री के यह कुछ नहीं हो सकता।