Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उपनिषद् की श्रुतियों और वेद मन्त्रों में बहुत स्थल पर स्त्रियों के दुर्गुणों का वर्णन है क्योंकि उसकी वास्तविकता (यथार्थ) को जानना दुष्कर (कठिन) है। केवल वेद में प्रायश्चित देखना चाहिये।अपनी माता का आन्तरिक दुराचार देखकर कहना चाहिये कि मेरी माता ने पतिव्रत भंग करके अन्य पुरुष से सहवास (भोग) किया है तो माता के रुचिरूप अन्य पुरुष को मेरा पिता पवित्र करे।
टिप्पणी :
श्लोक 19 से 21 तक वागमार्गियों के काल के मिलाये हुए हैं क्योंकि वेद में इस विषय का कहीं भी उल्लेख नहीं है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये ग्यारह (9/14-24) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है—
1. प्रसंगविरोध- 9/11 तक स्त्रियों की रक्षा की बात कहकर 12-13 श्लोकों में स्त्रियों को दूषित करने वाले दुर्गुणों का परिगणन किया है । इसके पश्चात् इन श्लोकों में रक्षा के लिये एक नया प्रसंग प्रारम्भ करना असंगत है । एक प्रसंग के समाप्त होने पर पुनः उसको प्रारम्भ करना उचित भी नही है ।
2. विषय-विरोध- इस अध्याय के प्रारम्भ मे (9/1 में) प्रस्तुत विषय का निर्देश किया गया है अर्थात् स्त्री-पुरुष के संयोगकालीन कर्त्तव्यों का वर्णऩ करना । किन्तु इन श्लोकों में इस प्रस्तुत विषय को न कहकर स्त्रियों के स्वभाव का निन्दात्मक विश्लेषण किया है, जो कि विषयबाह्य होने से प्रक्षिप्त है ।
3. अन्तर्विरोध- इन श्लोकों में स्त्रियों के निन्दात्मक स्वभाव का वर्णऩ करके स्त्रियों के प्रति हीनभावना और घृणाभाव दिखाया गया है । यह मनु की मौलिक भावना के विरुद्ध है । क्योंकि मनु स्त्रियों को पूजनीय, समानस्तरीय, घर की लक्ष्मी और पवित्र देवी मानते है । इस विषय में ये (3/55-63, 9/26, 28, 95, 101, 102) मनु के श्लोक द्रष्टव्य है । और 18 वें श्लोक में स्त्रियों को वेदमन्त्रो के अधिकार से वञ्चित, निरिन्द्रय=धर्मज्ञान से रहित और अनृत= झूठ बोलने वाली कहा है । यह मनु तथा वेदादिशास्त्रों से विरुद्ध मान्यता है । मनु ने सभी धर्मकार्योमें स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार दिया है और धर्मकार्यो में स्त्री को प्रमुख माना है । क्या धर्मकार्य बिना मंत्र-पाठ के सम्भव है? इस विषय में 9/28, 96 श्लोक द्रष्टव्य है ।
और 2/66 की समीक्षा भी द्रष्टव्य है ।
4. शैली-विरोध- 17 वें श्लोक में ’मनुरकल्पयत्’ वाक्य से स्पष्ट है कि इन श्लोकों को मनु से भिन्न व्यक्ति ने बनाकर मनु के नाम से प्रमाणित करने की चेष्टामात्र की है । और 23-24 श्लोकों में ऐतिहासिक शैली से कथन किया गया है । और अक्षमाला-वसिष्ठ, शारंगी-मन्दपाल के विवाहों का वर्णन है । ये व्यक्ति मनु से परवर्ती है, मनु इनके नामों का कथन कैसे कर सकते थे ? अतः ये मनु की शैली के श्लोक नहीं है । और मनु ने पक्षपात रहित होकर गुण-दोष के आधार पर प्रशंसा या निन्दा की है । परन्तु इन श्लोकों में पक्षपातपूर्ण दुराग्रहवश होकर निन्दात्मक वर्णन किया गया है । इस शैली-विरोध के कारण ये श्लोक प्रक्षिप्त है । और प्रक्षेपक ने स्त्रियों के प्रति अत्यन्त सम्मान रखने वाले मनु पर 17वें श्लोक में ’क्रोध, द्रोह, निन्दित आचरणादि दुर्गुण स्त्रियों के लिये मनु ने कहे हैं’ इस प्रकार का मिथ्या दोषारोपण ही किया है ।