Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्त्रियों के हेतु छः कर्म दूषित हैं-1-मद्यपान, 2-दुष्ट संग, 3-पति वियोग, 4-इधर उधर घूमना, 5-असमय सोना, 6-दूसरे के घर में वास करना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मद्य, भांग आदि मादक द्रव्यों का पीना, दुष्टपुरुषों का संग, पतिवियोग, अकेली जहां-तहां व्यर्थ पाखंडी आदि के दर्शन-मिस से फिरती रहना, और पराये घर में जाके शयन करना वा वास ये छः स्त्री को दूषित करनेवाले दुर्गुण है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
मद्य-भांग आदि मादक द्रव्यों का पीना, दुष्ट पुरुषों का संग, पति से वियोग, अकेली जहां तहां व्यर्थ पाखण्डी आदि के दर्शन के मिष से फिरती रहना, और पराये घर में जाके शयन करना, किंवा वास करना, ये छः स्त्री को दूषित करने वाले दुर्गुण हैं।१
टिप्पणी :
१. पति और स्त्री का वियोग दो प्रकार का होता है। पहला, कहीं कार्यार्थ देशान्तर में जाना। और दूसरा, मृत्यु से वियोग हो जाता। इन में से प्रथम का उपाय यही है कि पुरुष यदि दूर देश में यात्रार्थ जावे तो स्त्री को भी साथ रखे। इसका प्रयोजन यही है कि बहुत समय तक वियोग न रहना चाहिए। (स० स० ४)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह छः दोष हैं जिनसे स्त्रियों को बचाना चाहिये। (1) पान-शराब आदि नशे का पीना। (2) दुर्जन संसर्ग-दुष्टों का संग (3) पत्या च विरह-पति से अलग रहना, (4) अटन-इधर-उधर फिरना, (5) स्वप्न-बिना नियम के सोना, (6) अन्य गेहवास-दूसरों के घर में वास करना।