Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
एकत्रित धन को व्यय करने, गृहस्थी का सारा प्रबन्ध, खाने पहनने घर आदि के बनाने का अधिकार देने और शुद्ध व पवित्र रहने से स्त्री वश में रहती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अपनी स्त्री को धन की संभाल और उसके व्यय की जिम्मेदारी में, घर एवं घर के पदार्थों की शुद्धि में धर्मसम्बन्धी अनुष्ठान- अग्निहोत्र आदि में, भोजन पकाने में, और घर की सभी वस्तुओं की देखभाल में लगाये ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन-इन चीजों की देख भाल का काम स्त्रियों के सुपिर्द करें:- (1) (अर्थस्य संग्रहे) धन के रखने (2) (व्यये) खर्च करने (3) (शौचे) सफाई (4) (धर्मे) यज्ञ आदि (5) (अन्न पंक्ति) भोजन की तैय्यारी (6) (पारिणाहयस्य वेक्षणे) घर के सामान की देखभाल।