Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पति का वीर्य अपनी स्त्री के गर्भ में प्रविष्ट होकर सन्तान रूप से संसार में उत्पन्न होता है। स्त्री में विशेष धर्म यही है कि उससे दूसरी बार सन्तान उत्पन्न होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पति वीर्यरूप में स्त्री में प्रवेश करके गर्भ बनकर सन्तानरूप से संसार में उत्पन्न होता है स्त्री का यही जायापन = स्त्रीपन है जो इस स्त्री में सन्तानरूप में पति पुनः उत्पन्न होता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पति भार्या में गर्भ के रूप में प्रविष्ट हो कर लोक में जन्म लेता है इसीलिये भार्या का नाम ’जाया‘ है क्योंकि इसी में वह फिर जन्म लेता है।
तात्पर्य वह है कि जो गर्भ पुरुष के वीर्य के रूप में स्त्री की योनि में प्रविष्ट होता है वह उस पुरुष का प्रत्येक अंग से निचोड़ा हुआ सत है। इसलिये उसको ’सुत‘ अर्थात् निचोड़ा हुआ कहते हैं।