Manu Smriti
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कालेऽदाता पिता वाच्यो वाच्यश्चानुपयन्पतिः ।मृते भर्तरि पुत्रस्तु वाच्यो मातुररक्षिता ।।9/4

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उचित समय पर कन्यादान न देने से कन्या का पिता, रजोदर्शन से निवृत्ति होने पर ऋतुकाल में उससे भोग न करने से उसका पति, तथा वृद्धावस्था में पति के देहान्त हो जाने पर पुत्र अपनी माता की रक्षा न करे तो यह तीनों पापी होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(काले) विवाह की अवस्था में (अदाता) कन्या को न देने वाला अर्थात् विवाह न करने वाला (पिता वाच्यः) पिता निन्दनीय होता है (च) और (अनुपयन् पतिः) (विवाह-पश्चात् ऋतुकाल के अनन्तर) संगम न करने वाला पति निन्दनीय होता है (भर्तरि मृते) पति की मृत्यु होने के बाद (मातुः + अरक्षिता पुत्रः वाच्यः) माता की (भरण-पोषण आदि से) रक्षा न करने वाला पुत्र निन्दनीय होता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि विवाह काल आने पर पिता अपनी कन्या के विवाह का प्रबन्ध न करे, यदि पति के मरने पर पुत्र माता का पालन न करे तो यह सब निन्दा के पात्र हैं।
 
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