Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्मानुसार कर्म करने वाले पुरुष स्त्रियों के संयोग वियोग के प्राचीन नियमों को वर्णन करते हैं कि किस समय स्त्री से कैसा व्यवहार करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अब मैं) (धर्मे वर्त्मनि तिष्ठतोः) धर्ममार्ग पर चलने वाले (स्त्रियाः च पुरुषस्य एव) स्त्री-पुरुष के (संयोगे च विप्रयोगे) संयोगकालीन = साथ रहने तथा वियोगकालीन = अलग रहने के (शाश्वतान् धर्मान् वक्ष्यामि) सदैव पालन करने योग्य धर्मों = कर्त्तव्यों को कहूंगा-
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धर्मामार्ग पर आरूढ़ पति-पत्नी का परस्पर में संयोग या वियोग होने पर उनके नित्यधर्मों का अब मैं बखान करता हूं। पति-पत्नी का संयोग-धर्म-
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(धर्मे वत्र्मनि तिष्ठतोः) धर्म के मार्ग में चलने वाले (पुरुषस्य स्त्रियाः च एव) पुरुष और स्त्री से (संयोगे विप्रयोगे च) संयोग और वियोग सम्बन्धी (शाश्वतान् धर्मान्) नित्य धर्मों को (वक्ष्यामि) कहूँगा।