Manu Smriti
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गर्भिणी तु द्विमासादिस्तथा प्रव्रजितो मुनिः ।ब्राह्मणा लिङ्गिनश्चैव न दाप्यास्तारिकं तरे ।।8/407
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दो मास से अधिक की गर्भिणी स्त्री, सन्यासी वानप्रस्थ, ब्राह्मण, ब्रह्मचारी इन सबसे नदी पार करने का कर न लेना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (८।४०७ वां) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं - १. प्रसंग विरोध - यहां पूर्वापर के ४०६ और ४०८ श्लोकों में नाविकों के विवादों का प्रसंग है । परन्तु यह श्लोक उस क्रम को भंग कर रहा है । क्यों कि इसमें विवाद की बात न होकर ब्राह्मणादि से किराया न देने की बात कही है । अतः यह श्लोक अप्रासंगिक है ।
 
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