Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नदी में नाव का कर नदी के बहाव व ऋतु कालादि के अनुसार निर्धारित (नियत) करना चाहिये। और समुद्र में पोतों (जहाजों में) का चलना वायु के अधीन है अतः समुद्र द्वारा यात्रा व व्यापार करने वालों से एक बार उचित कर निर्धारित कर देना चाहिये। उसमें बहाव व ऋतु काल का विचार नहीं होता।
टिप्पणी :
श्लोक 406 से स्पष्ट विदित होता है कि मनु के समय समुद्र में पोत, जहाज चलते थे और उससे आर्य राजा अपना कर भी लेते थे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. नदी का लम्बा रास्ता पार करने के लिए स्थान के अनुसार (तेज बहाव, मन्द प्रवाह, दुर्गम स्थल आदि) समय के अनुसार (सर्दी, गर्मी, रात्रि आदि) किराया निश्चित होना चाहिए यह नियम नदी - तट के लिए समझना चाहिए समुद्र में यह नियम नहीं है अर्थात् समुद्र में वहां की स्थिति के अनुसार किराया निश्चित करना चाहिए ।
टिप्पणी :
‘‘जो लम्बे मार्ग में समुद्र की खाडि़यां वा नदी तथा बड़े नदों में जितना लम्बा देश हो उतना कर स्थापन करे और महासमुद्र में निश्चित कर स्थापन नहीं हो सकता किन्तु जैसा अनुकूल देखे कि जिससे राजा और बड़े - बड़े नौकाओं के समुद्र में चलाने वाले दोनों लाभयुक्त हों वैसी व्यवस्था करे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
लम्बी उतराई का कर देशकाल के अनुसार लें। यह नियम नदी का है, समुद्र का नहीं। अर्थात् समुद्र के नियम अलग होने चाहिये।