Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माता पिता व स्त्री और पुत्र जो अपने वर्ण से भ्रष्ट हो गये हों उनमें से किसी एक को त्याग करें तो वह छः सौ पण दण्ड के योग्य होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. न माता, न पिता, न स्त्री और न पुत्र त्यागने योग्य होते हैं अपतित अर्थात् निर्दोष होते हुए जो इनको छोड़े तो राजा के द्वारा उस पर छह सौ पण दंड किया जाना चाहिए ।
टिप्पणी :
अनुशीलन - ३८८ और ३८९ श्लोक विषयविरोध के अन्तर्गत आते हुए भी प्रक्षिप्त प्रतीत नहीं होते । इन्हें स्थानभ्रष्ट समझना चाहिए, क्यों कि १. इनका मनु की किसी मान्यता से विरोध नहीं है और न ये किसी अन्य आधार पर प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं, २. इस अध्याय में इनमें सम्बन्धित प्रसंग भी है । प्रतीत होता है कि ये श्लोक चौथे विवाद ‘मिलकर उन्नति या व्यापार करना’ विषय से खण्डित होकर स्थानभ्रष्ट हुए हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
माता, पिता, स्त्री तथा पुत्र यदि पतित न हुये हों तो त्यागने के योग्य नहीं हैं। इनको जो कोई त्यागे वह छः सौ पण जुर्माना दे।