Manu Smriti
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यस्य स्तेनः पुरे नास्ति नान्यस्त्रीगो न दुष्टवाक् ।न साहसिकदण्डघ्नो स राजा शक्रलोकभाक् ।।8/386

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
1-चोर, 2-अन्य की स्त्री से भोग करने वाला, 3-खोटे वचन भाषी, 4-बलात्कार करने वाला, 5-डण्डे (लाठी) से आघात करने वाला, यह सब जिस राजा के राज्य में नहीं है वह राजा इन्द्रलोक को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस राजा के राज्य में न चोर न परस्त्रीगामी न दुष्टवचन का बोलने हारा न साहसिक डाकू और न दण्डघ्न अर्थात् राजा की आज्ञा का भंग करने वाला है वह राजा अतीव श्रेष्ठ है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
अनुशीलन - महर्षि ने यहां ‘शक्रलोकमाक्’ पद का अभिप्रायायं ग्रहणं किया है । जिन टीकाकारों ने ‘शक्रलोक भाक्’ का ‘इन्द्रलोक में जाने वाला’ या ‘स्वर्ग’ में जाने वाला अर्थ किया है वह उचित नहीं है । इस पद का अर्थ है कि वह राजा ‘इन्द्र’ पद का अधिकारी, अर्थात् इन्द्र के समान श्रेष्ठ और शक्तिशाली राजा माना जाता है, वह इन्द्र के समान प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली हो जाता है अगले श्लोक से इन अर्थ की पुष्टि हो जाती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, जिस राजा के राज्य में न कोई चोर है, न कोई परस्त्री गामी है, न कोई दुष्टभाषी है, न कोई डाकू-लुटेरा आदि साहसिक है, और न कोई मार-पीट करने वाला है, वह राजा शक्तिशाली राज-पद का अधिकारी होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वह राजा स्वर्गलोक का भागी है जिसके नगर में न चोर है, न व्यभिचारी, न गाली देने वाला और न डाकू, न मारपीट करने वाला।
 
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