Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
त्रिराचामेदपः पूर्वं द्विः प्रमृज्यात्ततो मुखम् ।खानि चैव स्पृशेदद्भिरात्मानं शिर एव च ।2/60

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पहले तीन बार आचमन करें, पश्चात् दो बार मुँह धोवे और नाक, कान, आँख, मुँह, छाती, सर को पानी से छुयें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (पूर्वं अपः त्रिः + आचामेत्) पहले जल का तीन बार आचमन करे (ततः) उसके बाद (मुखं द्विः प्रमृज्यात्) मुख को दो बार धोये (च) और (खानि एव) नाक, कान, नेत्र आदि इन्द्रियों को (आत्मानं च शिरः एव) हृदय और सिर को भी जल से (स्पृशेत्) स्पर्श करे ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS