Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
1-अँगूठा, 2-तर्जनी, 3-कनिष्ठा इन तीनों का मूल क्रम से ब्रह्म, देव, पितर, और प्रजापति तीर्थ कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अंगुष्ठमूलस्य तले) अंगूठे के मूलभाग के नीचे का स्थान ब्राह्मं तीर्थ - प्रचक्षते ब्राह्मतीर्थ अंगुलिमूले कालम् अंगुलियों के मूलभाग का स्थान कार्यतीर्थ अग्रे दैवम् अंगुलियों के अग्रभाग का स्थान दैवतीर्थ, और तयोः अधः पिव्यम् अंगुलियों और अंगूठे का मध्यवर्ती मूलभाग का स्थान पितृतीर्थ प्रचक्षते कहा जाता है ।