Manu Smriti
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ब्राह्मेण विप्रस्तीर्थेन नित्यकालं उपस्पृशेत् ।कायत्रैदशिकाभ्यां वा न पित्र्येण कदा चन ।2/58

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मणसदैव ब्रह्मतीर्थ से आचमन करे। देवतीर्थ, पित्रतीर्थ और प्रजाएतृ-तीर्थ से आचमन न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विप्रः द्विज नित्यकालम् प्रतिदिन आचमन करते समय ब्राह्मेण तीर्थेन ब्राह्मतीर्थ हाथ के अंगूठे के मूलभाग का स्थान, जिससे कलाई भाग की ओर से आचमन ग्रहण किया जाता है से वा अथवा काय - त्रै दशिकाभ्याम् कायतीर्थ - प्राजापत्य कनिष्ठा अंगुली के मूलभाग के पास का स्थान से या वैदशिक देवतीर्थ -उंगलियों के अग्रभाग का स्थान से उपस्पृशेत् आचमन करे, पिव्येण कदाचन न पितृतीर्थ अंगूठे तथा तर्जनी के मध्य का स्थान से कभी आचमन न करे ।
 
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