Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
माला पहनना, सुगन्धित वस्तु इत्र लगाना, वस्त्र तथा आभूषण भेजना, स्पर्श करना, हास्य करना, आलिंगन आदि करना, एक शय्या पर बैठना यह सब सप्रहण कहलाता है। इसको मनु आदि ऋषियों ने कहा।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन्द्रियासक्ति के कारण एक दूसरे को आकर्षित करने के लिए माला, सुगन्ध आदि शृंगारिक वस्तुओं का आदान - प्रदान करना विलासक्रीडाएं - हंसी - मखौल, छेड़खानी आदि आभूषण और कपड़ों आदि का स्पर्श (शरीर स्पर्श तो इसमें स्वतः ही परिगणित हो जाता है) और साथ मिलकर अर्थात् सटकर खाट आदि पर बैठना ये सब बातें ‘संग्रहण’ - विषयगमन में मानी गयी हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
संग्रहण दोष यह है:-(उपचारक्रिया) माला आदि पहना देना, (केलि) परिहास, (भूषण वाससां स्पर्शः) भूषण वस्त्र का छूना, (सह खट्वासनम्) एक चारपाई पर बैठना, (अदेशे स्त्रियं स्पृशेत्) स्त्री के गुप्त अंग को छूना, (तथा स्पष्टः वा मर्षयेत्) स्त्री गुप्त अंग को छुये और वह कुछ न कहे। अर्थात्-परस्पर अनुमति से एक दूसरे को छूना।