Manu Smriti
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यस्त्वनाक्षारितः पूर्वं अभिभाषते कारणात् ।न दोषं प्राप्नुयात्किं चिन्न हि तस्य व्यतिक्रमः ।।8/355

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस मनुष्य का दोष प्रथम कभी ज्ञात नहीं हुआ यदि वह किसी विशेष कारणवश परस्त्री से एकान्त में परामर्श करता है तो वह अदण्डनीय है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
किन्तु जो पहले ऐसे किसी अपराध में अपराधी सिद्ध नहीं हुआ है, यदि वह किसी कारणवश बातचीत करे तो किसी दोष का भागी नहीं होता क्यों कि वह कोई मर्यादाभंग नहीं करता ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि वह पहले इस दोष का दोषी नहीं है और किसी विशेष कारण से बात कर रहा है तो उसको दोषी न समझें क्योंकि वह कोई अधर्म नहीं कर रहा है।
 
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