Manu Smriti
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परदाराभिमर्शेषु प्रवृत्तान्नॄन्महीपतिः ।उद्वेजनकरैर्दण्डैश्छिन्नयित्वा प्रवासयेत् ।।8/352
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य परस्त्री रमण (दूसरे की स्त्री से मैथुन) करने वाले हैं उत्साह (उद्वेग) दिलाने वाले हैं दण्ड द्वारा उनके शरीर को छिन्न (चिह्न्ति) करके देश से निकाल दें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पराई स्त्री के साथ संभोग करने में प्रवृत्त पुरुषों को राजा भयभीत कर देने वाले दण्डों से नाक-कान आदि कटवा कर देश से निकाल दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(महीपतिः) राजा (परदाराभिमर्शेषु प्रवृत्तान् नन्) ऐसे लोगों को जो परस्त्रीगमन में प्रवृत्त हैं (उद्वेजन करैः दण्डैः छिन्नायित्वा) नमूने की सज़ा (Exemplary punishment) देकर (प्रवासयेत्) देश से निकाल दें। अर्थात् कालापानी दे दें।
 
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