Manu Smriti
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नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवति कश्चन ।प्रकाशं वाप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युं ऋच्छति ।।8/351

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आतताई के वध में उसके मारने वाले को पाप नहीं होता जो मनुष्य प्रकट वा अप्रकट गुप्त दशा में क्रोधोन्मत्त होकर मारता है उसको वैसा ही क्रोध का फल मिलता है।
टिप्पणी :
आतताई के अर्थ विश्वासघाती व कृतन्नी के हैं अर्थात् अग्नि लगाने वाला विष देने वाला, धन, सम्पत्ति, धान्य, खेत स्त्री का अपहरण करने वाला आदि आतताई कहलाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
दुष्ट पुरूषों के मारने में हन्ता को पाप नहीं होता चाहे प्रसिद्ध (सबके सामने) मारे चाहे अप्रसिद्ध (एकान्त में) क्यों कि क्रोधी को क्रोध से मारना जानो क्रोध से क्रोध की लड़ाई है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि सब के सामने व एकान्त में आततायी को मारने वाले का कोई दोष नहीं होता। क्योंकि क्रोधी को क्रोध से मारना, मानो क्रोध से क्रोध की लड़ाई है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आततायी के मारने में मारने वाले को दोष लगता नहीं। चाहे सबके सामने मारना पड़े या एकान्त में, क्रोध-क्रोध को प्राप्त होता है।
 
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