Manu Smriti
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गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।आततायिनं आयान्तं हन्यादेवाविचारयन् ।।8/350

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चाहे गुरु व बालक, वृद्ध, ब्राह्मण व विद्वान् ही क्यों न होवे परन्तु आतताई होने की दशा में बिना सोचे उसको अवश्य वध करें। कुछ विचार न करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चाहे गुरू हो, चाहे पुत्र आदिक बालक हों, चाहे पिता आदि वृद्ध चाहे ब्राह्मण और चाहे बहुत शास्त्रों का श्रोता क्यों न हो जो धर्म को छोड़ अधर्म में वर्तमान, दूसरे को बिना अपराध मारने वाले हैं उनको बिना विचारे मार डालना अर्थात् मारके पश्चात् विचार करना चाहिए । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
चाहे गुरु हो, चाहे पुत्र आदि बालक हो, चाहे पिता आदि वृद्ध हो, और चाहे बड़ा भारी शास्त्री ब्राह्मण भी क्यों न हो, यदि वह आततायी हो और घात-पात के लिये आता हो, तो उसे बिना विचारे तत्क्षण मार डालनी चाहिये।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आततायी को बिना संकोच के मार दे चाहे वह गुरु हो, या बालक, बूढ़ा, ब्राह्मण या वेदों का बहुत पढ़ा हुआ।
 
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