Manu Smriti
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न मित्रकारणाद्राजा विपुलाद्वा धनागमात् ।समुत्सृजेत्साहसिकान्सर्वभूतभयावहान् ।।8/347

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब प्राणियों के भय देने वाले व बलात्कार करने वाले मनुष्य से अधिक धन मिलने के कारण उसे क्षमा न करें अर्थात् वह अधिक धन देवे तो भी उसे दण्ड देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
न मित्रता, न पुष्कल धन की प्राप्ति से भी राजा सब प्राणियों को दुःख देने वाले साहसिक मनुष्य को बंधन - छेदन किये बिना कभी छोड़े । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिये कि वह मित्रता किंवा पुष्कल धन की प्राप्ति के होने पर भी सब प्राणियों को भयभीत करने वाले डाकू-लुटेरे आदि साहसिकों को दण्ड दिये बिना न छोड़े।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा को चाहिये कि सब प्राणियों को भय देने वाले डाकुओं को न छोड़ें, चाहे वह मित्र हों और चाहे उनसे अधिक धन मिलता हो।
 
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