Manu Smriti
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ऐन्द्रं स्थानं अभिप्रेप्सुर्यशश्चाक्षयं अव्ययम् ।नोपेक्षेत क्षणं अपि राजा साहसिकं नरम् ।।8/344

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन्द्र की पदवी प्राप्त करने का इच्छुक तथा अक्षय यश प्राप्त करने की अभिलाषा रखने वाला राजा पक्षपात से भी बलात्कार करने वाले मनुष्य की सहानुभूति न करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राज्य के अधिकारी धर्म और ऐश्वर्य की इच्छा करने वाला राजा बलात्कार काम करने वाले डाकुओं को दंड देने में एक क्षण भी देर न करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो राजा सर्वाधिपत्य राज-पद के पाए रखने की अभिलाषी हो और अविनाशी धर्म किंवा अक्षय यश के पाने की इच्छा करता हो, उसे चाहिये कि वह बलात्कार करने वाले दुष्ट मनुष्य को दण्ड देने में एक क्षण भी देरी न करे। क्योंकि दुष्ट वचन बोलने वाले चोर, तथा मार-पीट करने वाले से भी अत्यधिक पापी बलात्कार करने वाला मनुष्य है।
 
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