Manu Smriti
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असंदितानां संदाता संदितानां च मोक्षकः ।दासाश्वरथहर्ता च प्राप्तः स्याच्चोरकिल्बिषम् ।।8/342
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूसरे के छूटे हुए घोड़े को अहंकार वश बाँधने हारा व घुड़साल में बँधे हुए घोड़े आदि को छोड़ने हारा और दास, घोड़ा, रथ इनको हरने वाला चोर के पाप को पाता है।
 
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