Manu Smriti
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द्विजोऽध्वगः क्षीणवृत्तिर्द्वाविक्षू द्वे च मूलके ।आददानः परक्षेत्रान्न दण्डं दातुं अर्हति ।।8/341
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य यह सब देश पर्यटन कर रहे हों और इनके पास भोजनार्थ कुछ न हो यदि यह मार्ग के समीपी खेत के दो गन्ने दो मूली ले लेवें तो भी अदण्डनीय है।
 
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