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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
योऽदत्तादायिनो हस्ताल्लिप्सेत ब्राह्मणो धनम् ।याजनाध्यापनेनापि यथा स्तेनस्तथैव सः ।।8/340
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण चोर को पढ़ाकर तथा उसके द्वारा यज्ञ कराके द्र्र्रव्य लेने की इच्छा रखता है। वह ब्राह्मण में समान है।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो ब्राह्मण अनुचित धन कमाने वाले के हाथ से यज्ञ की दक्षिणा या पढ़ाने की दक्षिणा के रूप में भी धन लेने की इच्छा करता है वह भी उसी के समान चोर है।
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