Manu Smriti
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ब्राह्मणस्य चतुःषष्टिः पूर्णं वापि शतं भवेत् ।द्विगुणा वा चतुःषष्टिस्तद्दोषगुणविद्धि सः ।।8/338

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चैसठ गुना, सौ गुना, एक सौ अट्ठाईस गुना दण्ड क्रमानुसार 1-शूद्र, 2-वैश्य, 3-क्षत्रिय, 4-ब्राह्मण को देना चाहिये। जब वह वस्तुओं के गुण दोषों को जानते हों।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वैसे ही जो कुछ विवेकी होकर चोरी करे उस शूद्र को चोरी से आठ गुणा वैश्य को सोलह गुणा क्षत्रिय को बत्तीस गुणा ब्राह्मण को चैंसठ गुणा वा सौ गुणा अथवा एक सौ अठाईसगुणा दण्ड होना चाहिए अर्थात् जिसका जितना ज्ञान और जितनी प्रतिष्ठा अधिक हो, उसको अपराध में उतना ही अधिक दण्ड होना चाहिए । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
चोरी करने पर शूद्र को चोरी के माल का आठ गुना, वैश्य को सोलह गुना, और क्षत्रिय को ३२ गुना दण्ड देना चाहिये। परन्तु ब्राह्मण को ६४ गुना, अथवा पूरा १०० गुना, अथवा चौसठ का दुगना दण्ड देना चाहिये, क्योंकि ब्राह्मण पूर्णतया चोरी के दोषगुणों का जानने वाला विवेकी होता है। अर्थात्, चोरी के दोषगुणों का जानने वाला विवेकी होता है। अर्थात्, जिस का जितना अधिक मान और जितनी अधिक प्रतिष्ठा हो, उसको अपराध में उतना ही अधिक दण्ड मिलना चाहिये।
 
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