Manu Smriti
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कार्षापणं भवेद्दण्ड्यो यत्रान्यः प्राकृतो जनः ।तत्र राजा भवेद्दण्ड्यः सहस्रं इति धारणा ।।8/336

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस अपराध में राजा के अतिरिक्त साधारण लोग कर्पापण दण्ड के योग्य होते हैं उस सहस्रपण दण्ड पाने के योग्य हैं। ऐसी शास्त्र मर्यादा
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस अपराध में साधारण मनुष्य पर एक पैसा दण्ड हो उसी अपराध में राजा को सहस्त्र पैसा दण्ड होवे अर्थात् साधारण मनुष्य से राजा को सहस्त्रगुणा दण्ड होना चाहिए ।
टिप्पणी :
मंत्री अर्थात् राजा के दीवान को आठ सौ गुणा, उससे न्यून को सात सौ गुणा, और उससे भी न्यून को छः सौ गुणा, इसी प्रकार उत्तर - उत्तर अर्थात् जो एक छोटे से छोटा भृत्य अर्थात् चपरासी है उसको आठ गुणे दंड से कम न होना चाहिए । क्यों कि यदि प्रजापुरूषों से राजपुरूषों को अधिक दण्ड न होवे तो राजपुरूष प्रजापुरूषों का नाश कर देवे; जैसे सिंह अधिक और बकरी थोड़े दण्ड से ही वश में आ जाती है, इसलिए राजा से लेकर छोटे से छोटे भृत्यपर्यन्त राजपुरूषों को अपराध में प्रजापुरूषों से अधिक दण्ड होना चाहिये । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस अपराध पर किसी साधारण मनुष्य को एक पण दण्ड हो, तो उसी अपराध में राजा को एक हजार पण दण्ड देने चाहिये, यह शास्त्र का सिद्धान्त है।१
टिप्पणी :
१. मन्त्री अर्थात् राजा के दीवान को आठसौ गुणा, उस से न्यून को सात सौ गुणा, और उससे भी न्यून को छः सौ गुणा। इसी प्रकार उत्तर-उत्तर अर्थात् जो एक छोटे से छोटा भृत्य अर्थात् चपरासी है इसको आठ गुणे दण्ड से कम न होना चाहिए। क्योंकि यदि प्रजापुरुषों से राजपुरुषों को अधिक दण्ड न होवे, तो राजपुरुष प्रजापुरुषों का नाश कर देवें, जैसे सिंह अधिक और बकरी थोड़े दण्ड से वश में आ जाती है। इसलिये राजा से लेकर छोटे से छोटे भृत्य पर्य्यन्त राजपुरुषों को अपराध में प्रजापुरुषों से अधिक दण्ड होना चाहिए। (स० स० ६) नोटः-यहां आठ सौ गुणा या आठ गुणा आदि से अभिप्राय चोरी के माल का आठ सौ गुणा या आठ गुणा आदि है, जैसे कि अगले श्लोक में वर्णित है।
 
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