Manu Smriti
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पिताचार्यः सुहृन्माता भार्या पुत्रः पुरोहितः ।नादण्ड्यो नाम राज्ञोऽस्ति यः स्वधर्मे न तिष्ठति ।।8/335

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पिता, आचार्य, सुहृदय माता, स्त्री, पुत्र और पुरोहित इनमें से जो स्वधर्म में स्थित न हों वह दण्डनीय हैं अर्थात् यह भी दण्ड योग्य हैं। राजा के समीप अपराधी होने की दशा में सब मनुष्य दंड देने योग्य हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चाहे पिता, आचार्य, मित्र, माता, स्त्री, पुत्र और पुरोहित क्यों न हो जो स्वधर्म में स्थित नहीं रहता वह राजा का अदण्डय नहीं होता अर्थात् जब राजा न्यायासन पर बैठ न्याय करे तब किसी का पक्षपात न करे किन्तु यथोचित दण्ड देवे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
चाहे पिता, आचार्य, मित्र, माता, पत्नी, पुत्र और पुरोहित भी क्यों न हों, यदि वह अपने धर्म में स्थित नहीं रहता, तो राजा उसे दण्ड दिये बिना न छोड़े।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पिता, आचार्य, मित्र, माता, स्त्री, पुत्र, पुरोहित यदि यह धर्म में न रहें अर्थात् अपराध करें तो यह राजा के द्वारा अदण्डय नहीं है। अर्थात् इनका दण्ड अवश्य देना चाहिये।
 
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