Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
स्यात्साहसं त्वन्वयवत्प्रसभं कर्म यत्कृतम् ।निरन्वयं भवेत्स्तेयं हृत्वापव्ययते च यत् ।।8/332

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्वामी के सम्मुख कुटुम्बियों के समान पूर्वक वस्तु ले जावें तो वह साहस कहाता है और यदि स्वामी के पीठ पीछे सम्बन्धियों से भिन्न पुरुष ले जावे और चुरा कर मुकर जाये तो वह चोरी कहलाती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वस्तु के स्वामी के सामने बलात्कार - पूर्वक जो चोरी आदि कर्म किया जाता है वह साहस - डाका डालना या बलात्कार कार्य कहलाता है स्वामी के पीछे से किसी वस्तु को लेना और किसी वस्तु को (सामने या परोक्ष में) चुराकर भाग जाना है वह ‘चोरी’ कहलाती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अन्वयवत्) अपनों के समान (प्रसमम्) जबरदस्ती (यत् कर्म कृतम् स्यात्) जो माल हरा जाय उसको ”साहस“ कहते हैं। जो परायों के समान लेवे वह चोरी है। साहस डाका है, डाकू माल का इस प्रकार लेता है मानों अपना ही है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS